उत्तरप्रदेश

सीएम योगी आदित्यनाथ के ज्ञानवापी वाले बयान को लेकर देश में सियासत गरमा गई, मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन दी प्रतिक्रिया

बरेली
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जिस ज्ञानवापी को आज कुछ लोग मस्जिद कहते हैं, वह ज्ञानवापी ही विश्वनाथ जी है। इस बयान को लेकर देश में सियासत गरमा गई है। मुस्लिम समुदाय के नेता इस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने भी शनिवार को इस पर प्रतिक्रिया जताई।

उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी ऐतिहासिक मस्जिद है। यह कई सौ साल पुरानी है। इस पर चल रहा विवाद न्यायालय में लंबित है। जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इसके मामले चल रहे हैं। मुस्लिम और हिंदू पक्ष के वकील इस पर बहस कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है क‍ि ज्ञानवापी को मस्जिद कहना दुर्भाग्यपूर्ण है, यह विश्वनाथ मंदिर है, उनका यह बयान उनकी जुबान पर शोभा नहीं देता। क्योंकि वह एक जिम्मेदार कुर्सी पर बैठे हैं, वह हर व्यक्ति के मुख्यमंत्री हैं। ऐसा बयान कानून का भी उल्लंघन करता है। मौलाना ने मुख्यमंत्री की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने कानून व्यवस्था के मामले में बेहतर कदम उठाए हैं। ज्ञानवापी का मामला न्यायालय में विचाराधीन है, ऐसे में मुख्यमंत्री के इस बयान से कानून की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, इसलिए मुख्यमंत्री को धार्मिक बयानबाजी से बचना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश के चारों कोनों में आध्यात्मिक पीठों की स्थापना करने वाले आदि शंकर की काशी में की गई साधना के समय भगवान विश्वनाथ द्वारा ली गई परीक्षा के एक उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा कि दुर्भाग्य से आज जिस ज्ञानवापी को कुछ लोग मस्जिद कहते हैं, वह ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ जी ही हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ स्वरूप ही है। भारतीय ऋषियों-संतों की परंपरा सदैव जोड़ने वाली रही है। इस संत-ऋषि परंपरा ने प्राचीन काल से ही समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया है। हमारे संत-ऋषि इस बात की ओर जोर देते हैं भौतिक अस्पृश्यता साधना के साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बाधक है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अस्पृश्यता को दूर करने पर ध्यान दिया गया होता, तो देश कभी गुलाम नहीं होता। संत परंपरा ने समाज में छुआछूत और अस्पृश्यता को कभी महत्व नहीं दिया। यही नाथपंथ की भी परंपरा है। नाथपंथ ने हरेक जाति, मत, मजहब, क्षेत्र को सम्मान दिया। सबको जोड़ने का प्रयास किया। नाथपंथ ने काया की शुद्धि के माध्यम से एक तरफ आध्यात्मिक उन्नयन पर जोर दिया तो, दूसरी तरफ समाज के हर तबके को जोड़ने के प्रयास किए।

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