राज्य

सम्राट चौधरी की नवादा में भाजपा प्रत्याशी से ज्यादा अग्निपरीक्षा

नवादा.

लोक जनशक्ति पार्टी से लेकर भारतीय जनता पार्टी ने नवादा सीट पर अपना प्रत्याशी दिया, लेकिन मुद्दा वहीं का वहीं है। नवादा ने भाजपा से गिरिराज सिंह को कभी सांसद बनाया, फिर लोजपा के चंदन सिंह को। दोनों ही बाहरी थे। इस बार विवेक सिंह के साथ भी यही बात प्रचारित हो रही है। लेकिन, नवादा की कहानी इतनी भी सहज नहीं है। नवादा में खेल बहुत रोचक हो गया है।

महागठबंधन अपने संकटों में घिरा है और समाधान नहीं निकाल सका है। दूसरी तरफ, भाजपा सामने खड़े राष्ट्रीय जनता दल प्रत्याशी की जाति के वोटरों को साथ लाने में अबतक विफल नजर आ रही है। ऐसे ही कई कारण है, जिससे बहुत दूसरे तरह का रोमांचक मुकाबला बनता दिख रहा है नवादा में।

चंदन सिंह फैक्टर कितने बड़े?
जैसे गिरिराज सिंह आए-गए, उसी तरह चंदन सिंह के बारे में विचार है। यही कारण है कि लोगों की जुबान पर उनके रहने या नहीं रहने की कोई बात नहीं होती सुनाई देती है। हां, भाजपा प्रत्याशी को जगह-जगह यह जरूर बताना पड़ता है कि वह क्यों बाहरी नहीं हैं और पिछले सांसद की किन खामियों का समाधान वह कैसे निकालेंगे।

राजद के आधार वोट में सेंध
राजद के विनोद यादव यहां दोनों प्रत्याशियों के मुकाबले कम चर्चा में नहीं हैं। यह चुनाव उनके जीने-मरने का सवाल बन गया है। उनके धुर विरोधी खेमे के श्रवण कुमार कुशवाहा को राजद ने टिकट दे दिया। वह पांच-सात करोड़ में राजद का टिकट बिकने की बात भी कह चुके हैं। महागठबंधन भले कुछ दावा करे, लेकिन विनोद यादव ने राजद के वोट बैंक का ठीकठाक हिस्सा प्रभावित किया है।

भूमिहार खुद हो गए विकल्पहीन
यह भूमिहार बाहुल लोकसभा सीट है। इसलिए, एनडीए में अमूमन इसी जाति पर दांव खेला जाता है। इस बार विवेक ठाकुर भी इसी समूह से आए हैं। भाजपा से भूमिहारों की नाराजगी का असर इस कारण से तो यहां निष्प्रभावी दिखता ही है, एक और बात यह भी है कि राजद के प्रत्याशी श्रवण कुमार कुशवाहा को इस जाति के लोग पसंद नहीं करते हैं। मतलब, भाजपा के लिए यह सोने पर सुहागा वाली स्थिति है। वैसे, भोजपुरी सिंग गुंजन सिंह ने निर्दलीय उतरकर भाजपा के इस वोट बैंक को नुकसान पहुंचाने की भरपूर कोशिश की है।

भाजपा के लिए सब बल्ले-बल्ले नहीं
भाजपा के लिए सबकुछ अच्छा है, यह कहना भी गलत है। यहां भाजपा कोटे से राज्य सरकार के उप मुख्यमंत्री और बिहार प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी की प्रतिष्ठा सीधे दांव पर है। कहा जा रहा है कि सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा के बावजूद श्रवण कुमार को लेकर कुशवाहा जाति के वोटर गोलबंदी की स्थिति में हैं।

विधायकों के लिहाज से गणित भी समझें
नवादा लोकसभा सीट में इस जिले के पांच विधानसभा क्षेत्र हैं और शेखपुरा जिले का बरबीघा विधानसभा क्षेत्र भी है। छह में से चार विधानसभा सीटें महागठबंधन के पास हैं, जबकि दो एनडीए के पास। इनमें राजद नेता विनोद यादव की भाभी विभा देवी और पूर्व मंत्री राजवल्लभ यादव के समर्थक विधायक प्रकाश वीर का फायदा महागठबंधन को मिलने की उम्मीद नहीं है। विनोद यादव और राजवल्लभ फैक्टर को मैनेज करना अंतिम समय में राजद के लिए कितना संभव होता है, यही देखने वाली बात है।

जातीय गणित में कहां-कहां भटक रही बात
जाति के हिसाब से सर्वाधिक प्रभावी भूमिहार वोट जहां छिटपुट बिखराव से इतर एकतरफा नजर आ रहा है, वहीं इसके बाद प्रभावी यादवों में ज्यादा टूट नजर आ रही है। महागठबंधन के लिए राहत की सबसे बड़ी बात मुस्लिम आबादी है, जो तीसरे नंबर पर मानी जाती है। महादलितों में पासी समुदाय राजद तो इससे टकराने वाली राजवंशी समाज भाजपा के साथ जाने की बात कह रहा है। रही बात पिछड़ों की तो इसे समेटने की कोशिश दोनों तरफ से हो रही है।

पिछले चुनाव का गणित भी देखें यहां
पिछले लोकसभा चुनाव में यहां राष्ट्रीय जनता दल ने विभा देवी को प्रत्याशी बनाया था और दावा किया था कि वह जीत हासिल करेंगी, लेकिन तब लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी चंदन सिंह ने 2014 के मुकाबले ज्यादा बड़ अंतर से जीत हासिल की। बाहुबली सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह ने पहली बार राजनीति में कदम रखा और यह जीत दर्ज की। चंदन सिंह को यहां 4.95 लाख से ज्यादा वोट आए, जबकि राजद की विभा देवी 3.47 लाख वोट ही हासिल कर सकीं। यहां करीब 35 हजार लोगों ने NOTA दबाया, फिर भी यहां एनडीए को 2014 के मुकाबले ज्यादा अंतर से जीत मिली। तब यहां गिरिराज सिंह ने राजद के पूर्व मंत्री राजवल्लभ यादव को हराया था। देखने वाली बात यह है कि इस बार राजवल्लभ के समर्थकों ने राजद के मौजूदा प्रत्याशी के खिलाफ स्टैंड ले रखा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button