इंदौरमध्य प्रदेश

शीतला सप्तमी के अवसर पर महिलाओं ने किया माता शीतला का पूजन

शीतला सप्तमी के अवसर पर महिलाओं ने किया माता शीतला का पूजन

कौन है माता शीतला, क्यों किया जाता है पूजन?

धार
महिलाओं ने शीतला सप्तमी के अवसर पर रात बारह बजे के बाद शीतला माता मंदिर में पहुंचकर माता का पूजन किया माता शीतला के पूजन के लिए महिलाएं घर पर पहले से ही तैयारी में जुटकर मां के लिए कई प्रकार का प्रसाद बनाकर पूजन सामग्री के साथ ही प्रसाद की थाली को सजाकर रखती है उसके बाद घर की महिलाओं द्वारा किचन की सफाई करने के बाद गैस चूल्हे पर स्वस्तिक साथिया बनाती है उसके बाद किचन में खाना नहीं बनाया जाता है  फिर ठंडे पानी से नहाने के बाद रात्रि में शीतला माता मंदिर पहुंचकर पूजन किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला सप्तमी-अष्टमी हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है। शीतला सप्तमी का पर्व होली एवं रंगपंचमी पर्व के सम्पन्न होने के पश्चात मनाया जाता है। देवी शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से आरंभ होती है।

सप्तमी के दिन शीतला मां की पूजा अर्चना की जाती है तथा पूजा के पश्चात बासी ठंडा खाना ही माता को भोग लगाया  जाता है जिसे बसौड़ा कहा जाता हैं। वही बासी भोजन प्रसाद के रूप में खाया जाता है तथा यही नैवेद्य के रूप में समर्पित सभी भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
 
अनेक धर्म ग्रंथों में शीतला देवी के संदर्भ में वर्णित है। स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गंर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान होती हैं।

शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है।

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। इस पूजन में शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है। इस विशिष्ट उपासना में शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग बसौड़ा उपयोग में लाया जाता है।

अलग-अलग मान्यतानुसार सप्तमी या अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढा़ जाता है।

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